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अग्रदाय राशि (Imprest Cash)

अग्रदाय राशि (Imprest  Cash)
 
1. प्रत्येक   स्टेशन पर निर्धारित धनराशि अग्रदाय के रुप में दी गयी है।
 
2. इस राशी के रखरखाव व किये गये खर्चों का विधिवत विवरण रजिस्टर मे किया जायेगा।
 
3. सभी किये गये भुगतान के बिलों के अनुरक्षण के लिए एक फाईल रखी जायेगी जिसमें सभी बिल तिथि वार रखे जायेंगे।
 
4. इस राशी का उपयोग साफ सफाई, छोटी मरम्मत एवं केवल उन्ही मदों पर किया जाना चाहिए जो मंडल स्टोर में उपलब्ध नही है।
 
5. सभी बिल माहवार समय पर मंडल कार्यालय को भेजे जाये।
 
6. सफाई या अल्य किसी कार्य के लिए लगाये व्यक्तियों को भुगतान करते
 
7. समय 'न्यूनतम मजदूरी भुगतान तियम' का पालन अवश्य करें।

 

Imprest Cash

(As per  Para No.1050 of Indian Railways Finance Code Volume 1)

  1.  Imprest Cash by Railways is “ An Imprest is standing advance of a fixed sum of money placed at the disposal of an Individual (Officer or Supervisor) to meet the following types of expenditure.

1) Petty Office expenses.
2) Cost of raw materials for the diet of indoor patients of hospitals.
3) Emergent charges which cannot be foreseen.
4) Other petty expenses as per extant delegation in each case. Emergency petty advances may also be made on the responsibility of the imprest holder out of imprest money placed at his disposal.

Note - Other petty expenses up to  Rs. 15,000 /- in each case 

A certificate to be recorded by the procuring official/Imprest holder in the following format:

"I,, am personally satisfied that these goods purchased are of the requisite quality and specification and have been purchased from a reliable supplier at a reasonable price."

1. The amount of an imprest must not be larger than is absolutely necessary. It should be reckoned at the lowest possible figure calculated to suffice for meeting charges of the nature referred to in the preceding paragraph and should be fixed in consultation with the Accounts Officer who will advise as to the appropriate amount of the imprest.

2. Subject to the provisions of the previous paragraph, the General Manager of a railway will have full power to sanction imprests. He may re-delegate his power in this respect to authorities subordinate to him on such conditions as he may think fit to impose. In the case of other offices, the grant of an imprest will require the sanction of the competent authority as decided by Railway Board.

(As per Model SOP, PHOD, HOD, DRM, ADRM,CWM & SAG officers in field units have full powers to sanction the Imprest Cash to the Officers & Supervisors.

3. The number of imprests should not be multiplied unnecessarily. An officer's imprest should meet the needs of every branch of his office. If he has subordinates who require petty sums, he should rather spare a small portion of his own imprest for their use than apply for separate imprest for them, taking acknowledgements from them in the same way as he himself furnishes to the Accounts Officer and retaining them in his office.

4. The responsibility for making proper arrangements for the safe custody of the imprest money rests entirely with the imprest holder and he must at all times be ready to produce the total amount of the imprest in vouchers or in cash.

5. The imprest account should be kept in duplicate, the counterfoil being kept by the imprest holder and the original, supported by the necessary vouchers, forwarded to the Accounts Officer from time to time as the holder of the imprest may require it to be replenished. The account should be closed ordinarily on the 27th of each month and recouped before the end of the month so as to ensure as many of the month's transactions as possible being included in the account. The imprest should be recouped once in a month only.

Important point

  • Finance concurrence is required for fixing the Imprest Cash amount.
  • Imprest Cash amount to be created purely on the need basis.
  • Imprest Cash amount to be reviewed periodically.
  • The amount of an Imprest must not be larger than is absolutely necessary.
  • It should be reckoned at the lowest possible figure calculated to suffice for meeting the office expenses.
  • Total amount of expenditure through Imprest Cash should not be exceeded the Budget grant for the purpose during the year.
  • The Imprest Cash holder may sanction emergent petty advances out of Imprest money placed at his disposal. ( that is Mini Imprest Cash out of Imprest Cash sanctioned to the Officer/ Supervisor)

RAILWAY EMPLOYEE INFO

शंटिंग के दौरान ली जाने वाली सावधानियां

  शंटिंग के दौरान रखी जाने वाली सावधानियां 



1. शंटिंग के लिए लोको पायलट, गार्ड को अधिकार पत्र T806 दिया जाना चाहिए.

2.शंटिंग अनुदेश स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए.

3. जिन सिगनलो को आन में पार करना हो उनका स्पष्ट उल्लेख T806 में किया जाना चाहिए.

4. यथासंभव स्थावर सिगनलो का उपयोग करे.

ब्लॉक उपकरण की खराबी BWM 4.20

ब्लाक उपकरण की खराबी BMW 4.20

निम्न परिस्थितियों में B/I को खराब मानकर उसका संचालन स्थगित.

1. गाड़ी पार होने के बाद LSS अपने आन स्थिति में नही.

2. SGE B/I गाड़ी के आगमन के बिना कम्प्यूटेटर को TOL से LC या Line closed स्थिति में घुमाया जा सकता हो.

रेक लिंक (RAKE LINK) एवं लाभ


रैक लिंक (RAKE LINK)

प्रत्येक गाड़ी के लिए निर्धारित संख्या में कोचो को मार्शलिंग ऑर्डर के अनुसार लगाया जाता है, जिसे रैक कहते हैं. रैक बनाने से इस बात की सुनिश्चित होती है कि सभी गाड़ियों में समान सुविधाये निर्धारित स्थान पर उपलब्ध हो सके.

गाड़ियों को प्रारम्भिक स्टेशन से गंतव्य स्टेशन तक संचालित होने और पुनः वापस आने के लिए कुछ समय लगता है, इसके लिए एक से अधिक रैक का प्रयोग किया जाता है. इन सभी रैक को इस प्रकार लिंक किया जाता है, कि गाड़ियों को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दोनों छोर से चलाया जा सके. इस तरह एक से अधिक रैक का प्रयोग करके एक निश्चित क्रमांक की गाड़ी चलाने की प्रक्रिया को रैक लिंक कहते है

जब एक रैक पहली गाड़ी को प्रारम्भ करता है तो वहाँ से लिंक शुरू हुआ ऐसा माना जाएगा और जहाँ पर वही रैक, उसे पुनः प्रारम्भ करता है, वहाँ लिंक समाप्त हुआ ऐसा माना जाएगा.

अतः एक निर्धारित लिंक को पूरा करने के लिए जो विभिन्न रैक निरंतर चलाए जाते है, उन्हें उनका लिंक रैक कहा जाता है. किसी भी रैक लिंक का या रैक की मार्शलिंग ऑर्डर में कोई बदलाव बिना COM की अनुमति के नहीं किया जाएगा. रैक लिंक पुस्तिका COM एवं CPTM द्वारा बनाई जाती है।


रैक लिंक तीन प्रकार के होते हैं-

1. एक ही रैक को अनेक दिनों तक ब्रांच लाइन गाड़ियों के लिए चलाया जा सकता है.

2. एक ही रैक कम दूरियों के अनेक खण्डों के लिए चलाई जा सकती है.

3. लम्बी दूरी के लिए लिंक को पूरा करने हेतु अनेक रैक चलाये जाते हैं.



इनवर्स रैक प्रोसेस : किसी विशिष्ट क्रमांक की गाड़ी का रैक समय सारणी के अनुसार स्टेशन पर उपलब्ध नहीं रहने की स्थिति में समान प्रकार के किसी दूसरे रैक (स्पेयर रैक ) को इस्तेमाल करके गाड़ी चलाने की प्रक्रिया को इनवर्स  रैक प्रोसेस कहते हैं

रैक लिंक तैयार करना : रैक का निर्धारण करने के लिए उसके वापसी समय का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसी प्रकार गाड़ियों की सेवायें कैसी देनी है, (दैनिक, साप्ताहिक आदि) इस पर भी रैक का निर्धारण किया जाता है।

रेंको की संख्या N| - 1

(जहाँ N दिनों की संख्या है, जो कि रैक के प्रस्थान से गंतव्य स्टेशन पर पहुंचकर वापस प्रस्थान स्टेशन से समय सारणी अनुसार उपलब्ध होने में लगते हैं)

रैक का विन्यास : (Marsiling of Rake) :-

रैक के विन्यास के लिये संरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, इसके साथ ही परिवहन आवश्यकताओं तथा यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर रैक निश्चित किये जाते हैं |

मेल / एक्स. एवं सवारी गाड़ियों के रैक विन्यास हेतु निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है:

1. मेल / एक्सप्रेस गाड़ियों की एन्‍टी टेलीस्कोपिक मार्शलिंग : गार्ड के ब्रेकवान को मिलाकर दोनों सिरों पर कम से कम 3 ATC अवश्य लगाना चाहिए |

इंजन +SLR +2ATC + अन्य डिब्बे----- + 2 ATC+ SLR

2. सवारी गाड़ी की एन्‍टी टेलीस्कोपिक मार्शलिंग: गार्ड के ब्रेकवान को मिलाकर दोनों सिरों पर कम से कम 2 ATC अवश्य लगाना चाहिए |

इंजन + SLR+ 1ATC+ अन्य डिब्बे--- + 1ATC+ SLR

3. ब्रांच लाईत पर चलने वाली सवारी गाड़ी :

इंजन + 1ATC+ साधारण डिब्बे + SLR + साधारण डिब्बे + 1ATC

रैक लिंक को प्रभावित करने वाले कारक-

1. रेक का निर्धारण करने के लिए उसके वापसी समय का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसी प्रकार गाड़ियों की सेवायें कैसी देनी है, (दैनिक, साप्ताहिक आदि) इस पर भी रेक का निर्धारण किया जाता है।
यह 
सूत्र (N-1), जहाँ N दिनों की संख्या है, यह रेक लिंक बनाने मे मदद करता है.

2. लिंक मे दिए हुए रेक जिस रेलवे से संवंन्धित होते हैं, उनके प्राथमिक अनुरक्षण का कार्य उसी रेलवे द्वारा किया जाता है. (ऐसा पी.ओ:एच. एवं अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए होता है.) जबकि सेकेण्डरी (गौण) अनुरक्षण उपयोगकर्ता रेलवे द्वारा छोटे रिर्पियर या सेफ टू रन परीक्षण के लिए किया जाता है. अनुरक्षण के लिए सामान्यतः छः घंटे का समय निर्धारित किया जाता है.

3. रेसे समय रैक का अनुरक्षण डिपो मे अधिक विलम्ब नही होना चाहिए. इससे स्टाक उपलब्धता गम्भीर रूप से प्रभावित होती है. किसी रेलवे पर यदि उसकी होल्डिंग से अधिक स्टाक आ जातें हैं तो उनका अनुरक्षण और नियोजन समय पर नही हो पाता है, तथा इस प्रकार रेक होने के वावजूद यात्रियों को असुविधा होती एवं रेक लिंक प्रभावित होता है.

4. रैक को प्लेटफार्म से हटाकर परीक्षण के लिए ले जाना या परीक्षण किए हुए रेक को प्लेटफार्म पर लाने में लगने वाला समय भी रेक लिन्क को प्रभावित करता है.

रैक लिंक से लाभ-

1. रैक लिंक मे चलने वाले रैक , सेट रैक होते है. इनका मार्शलिंग पूर्व निर्धारित होने के कारण अप्रासंगिक विलम्ब जैसे शंटिंग , पुरे रेक का पीओएच , लोडिंग /अनलोडिंग आदि मे लग़ने वाले समय को कम किया जा सकता है.

2. आवश्यक /जरुरतमंद क्षेत्रों के लिये अधिक सेवा दी जा सकती है .

3. अनुरक्षण/शिड्युल के वाद कोच का अनावश्यक खड़ा रहना कम किया जा सकता है.

4. कोचिंग यार्ड मे संकुलन को कम किया जा सकता है.

5. कोचेज का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है.

6. इससे यात्री थ्रु-पुट अधिक हो सकता है और रेलवे को अधिक राजस्व की प्राप्ति हो सकती है.

7. प्लेटफार्म, पिट - लाइन तथा अनुरक्षण लाइनों की अधिक उपलब्धता बनी रह सकती है.

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