रैक लिंक (RAKE LINK)
प्रत्येक गाड़ी के लिए निर्धारित संख्या में कोचो को मार्शलिंग ऑर्डर के अनुसार लगाया जाता है, जिसे रैक कहते हैं. रैक बनाने से इस बात की सुनिश्चित होती है कि सभी गाड़ियों में समान सुविधाये निर्धारित स्थान पर उपलब्ध हो सके.
गाड़ियों को प्रारम्भिक स्टेशन से गंतव्य स्टेशन तक संचालित होने और पुनः वापस आने के लिए कुछ समय लगता है, इसके लिए एक से अधिक रैक का प्रयोग किया जाता है. इन सभी रैक को इस प्रकार लिंक किया जाता है, कि गाड़ियों को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दोनों छोर से चलाया जा सके. इस तरह एक से अधिक रैक का प्रयोग करके एक निश्चित क्रमांक की गाड़ी चलाने की प्रक्रिया को रैक लिंक कहते है
जब एक रैक पहली गाड़ी को प्रारम्भ करता है तो वहाँ से लिंक शुरू हुआ ऐसा माना जाएगा और जहाँ पर वही रैक, उसे पुनः प्रारम्भ करता है, वहाँ लिंक समाप्त हुआ ऐसा माना जाएगा.
अतः एक निर्धारित लिंक को पूरा करने के लिए जो विभिन्न रैक निरंतर चलाए जाते है, उन्हें उनका लिंक रैक कहा जाता है. किसी भी रैक लिंक का या रैक की मार्शलिंग ऑर्डर में कोई बदलाव बिना COM की अनुमति के नहीं किया जाएगा. रैक लिंक पुस्तिका COM एवं CPTM द्वारा बनाई जाती है।
रैक लिंक तीन प्रकार के होते हैं-
1. एक ही रैक को अनेक दिनों तक ब्रांच लाइन गाड़ियों के लिए चलाया जा सकता है.
2. एक ही रैक कम दूरियों के अनेक खण्डों के लिए चलाई जा सकती है.
3. लम्बी दूरी के लिए लिंक को पूरा करने हेतु अनेक रैक चलाये जाते हैं.
इनवर्स रैक प्रोसेस : किसी विशिष्ट क्रमांक की गाड़ी का रैक समय सारणी के अनुसार स्टेशन पर उपलब्ध नहीं रहने की स्थिति में समान प्रकार के किसी दूसरे रैक (स्पेयर रैक ) को इस्तेमाल करके गाड़ी चलाने की प्रक्रिया को इनवर्स रैक प्रोसेस कहते हैं
रैक लिंक तैयार करना : रैक का निर्धारण करने के लिए उसके वापसी समय का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसी प्रकार गाड़ियों की सेवायें कैसी देनी है, (दैनिक, साप्ताहिक आदि) इस पर भी रैक का निर्धारण किया जाता है।
रेंको की संख्या N| - 1
(जहाँ N दिनों की संख्या है, जो कि रैक के प्रस्थान से गंतव्य स्टेशन पर पहुंचकर वापस प्रस्थान स्टेशन से समय सारणी अनुसार उपलब्ध होने में लगते हैं)
रैक का विन्यास : (Marsiling of Rake) :-
रैक के विन्यास के लिये संरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, इसके साथ ही परिवहन आवश्यकताओं तथा यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर रैक निश्चित किये जाते हैं |
मेल / एक्स. एवं सवारी गाड़ियों के रैक विन्यास हेतु निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है:
1. मेल / एक्सप्रेस गाड़ियों की एन्टी टेलीस्कोपिक मार्शलिंग : गार्ड के ब्रेकवान को मिलाकर दोनों सिरों पर कम से कम 3 ATC अवश्य लगाना चाहिए |
इंजन +SLR +2ATC + अन्य डिब्बे----- + 2 ATC+ SLR
2. सवारी गाड़ी की एन्टी टेलीस्कोपिक मार्शलिंग: गार्ड के ब्रेकवान को मिलाकर दोनों सिरों पर कम से कम 2 ATC अवश्य लगाना चाहिए |
इंजन + SLR+ 1ATC+ अन्य डिब्बे--- + 1ATC+ SLR
3. ब्रांच लाईत पर चलने वाली सवारी गाड़ी :
इंजन + 1ATC+ साधारण डिब्बे + SLR + साधारण डिब्बे + 1ATC
रैक लिंक को प्रभावित करने वाले कारक-
1. रेक का निर्धारण करने के लिए उसके वापसी समय का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसी प्रकार गाड़ियों की सेवायें कैसी देनी है, (दैनिक, साप्ताहिक आदि) इस पर भी रेक का निर्धारण किया जाता है।
यह
सूत्र (N-1), जहाँ N दिनों की संख्या है, यह रेक लिंक बनाने मे मदद करता है.
2. लिंक मे दिए हुए रेक जिस रेलवे से संवंन्धित होते हैं, उनके प्राथमिक अनुरक्षण का कार्य उसी रेलवे द्वारा किया जाता है. (ऐसा पी.ओ:एच. एवं अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए होता है.) जबकि सेकेण्डरी (गौण) अनुरक्षण उपयोगकर्ता रेलवे द्वारा छोटे रिर्पियर या सेफ टू रन परीक्षण के लिए किया जाता है. अनुरक्षण के लिए सामान्यतः छः घंटे का समय निर्धारित किया जाता है.
3. रेसे समय रैक का अनुरक्षण डिपो मे अधिक विलम्ब नही होना चाहिए. इससे स्टाक उपलब्धता गम्भीर रूप से प्रभावित होती है. किसी रेलवे पर यदि उसकी होल्डिंग से अधिक स्टाक आ जातें हैं तो उनका अनुरक्षण और नियोजन समय पर नही हो पाता है, तथा इस प्रकार रेक होने के वावजूद यात्रियों को असुविधा होती एवं रेक लिंक प्रभावित होता है.
4. रैक को प्लेटफार्म से हटाकर परीक्षण के लिए ले जाना या परीक्षण किए हुए रेक को प्लेटफार्म पर लाने में लगने वाला समय भी रेक लिन्क को प्रभावित करता है.
रैक लिंक से लाभ-
1. रैक लिंक मे चलने वाले रैक , सेट रैक होते है. इनका मार्शलिंग पूर्व निर्धारित होने के कारण अप्रासंगिक विलम्ब जैसे शंटिंग , पुरे रेक का पीओएच , लोडिंग /अनलोडिंग आदि मे लग़ने वाले समय को कम किया जा सकता है.
2. आवश्यक /जरुरतमंद क्षेत्रों के लिये अधिक सेवा दी जा सकती है .
3. अनुरक्षण/शिड्युल के वाद कोच का अनावश्यक खड़ा रहना कम किया जा सकता है.
4. कोचिंग यार्ड मे संकुलन को कम किया जा सकता है.
5. कोचेज का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है.
6. इससे यात्री थ्रु-पुट अधिक हो सकता है और रेलवे को अधिक राजस्व की प्राप्ति हो सकती है.
7. प्लेटफार्म, पिट - लाइन तथा अनुरक्षण लाइनों की अधिक उपलब्धता बनी रह सकती है.
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