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कैच एवं स्लिप साइडिंग

कैच साइडिंग
  • जहाँ ब्लाॅक सेक्शन में एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन की ओर लगातार एक तरफ अत्यधिक खड़ी चढ़ाई हो और ऐसी चढ़ाई वाले सेक्शन मे  जाते समय कोई गाड़ी यदि विभाजित हो जाए तो उसका पिछला भाग पीछे की ओर लुढककर दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है। ऐसे भाग को रोकने के लिए कैच साइडिंग लगाई जाती हैं यह साइडिंग मेन लाइन के साथ जुड़ी होती है व सामान्यतया पाॅइन्ट कैच साइडिंग के लिए ही लगे होते है ।
  • इसे परिस्थिति के अनुसार स्टेशन सीमा या ब्लाॅक सेक्शन दोनो मे  ही कहीं भी लगाया जा सकता है। जब यह स्टेशन सीमा मे  होती है तो पिछले ब्लाॅक सेक्शन का बचाव करती है एव  जब यह ब्लाॅक सेक्शन मे होती है तो स्टेशन सेक्शन का बचाव करती है।
  • जब यह स्टेशन सीमा में लगी होती है तो इसके पाॅइन्ट का संचालन स्टेशन के अन्य पाॅइन्टों के साथ ही होता है। आवश्यकतानुसार इसे ढलान वाले ब्लाॅक सेक्शन में भी बनाया जा सकता है, तब इसे टेस्ट इन्क्लाइंट कहते हैं। इसके पाॅइन्टों का संचालन करने हेतु सक्षम रेल कर्मचारी को नियुक्त किया जा सकता है जो कि ऊपर चढ़ाई से नीचे की ओर उतरने वाली गाड़ी के लोको पायलट द्वारा फेसिंग पाॅइन्ट पर गाड़ी रोकने के बाद एक पुस्तिका में लोको पायलट के हस्ताक्षर लेता है व फिर पाॅइन्ट को मेन लाइन के लिए सेट करके गाड़ी को सिगनल आॅफ कर रवाना करता है। इससे ढलान में जाते समय गाड़ी के ब्रेक पावर टेस्ट हो जाते हैं। यदि किसी कारण से गाड़ी के ब्रेक पावर कमजोर हो तो गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त न होकर कैच साइडिंग में चली जाए।
  • जब गाड़ी चढ़ाई में जाती है तब इसे साइडिंग का पाॅइन्ट उस गाड़ी के लिए ट्रेलिग पड़ता है। ऐसे मे  लोको पायलट को पाॅइन्ट विरुद्ध दिशा मे  लगा हुआ मिलता है और ऐसे मे  गाड़ी खड़ी कर दी जाए तो शायद चढ़ाई पर फिर गाड़ी न चढ़ पाए इसलिए ऐसे पाॅइन्ट पर स्प्रिंग लगाई जाती है और वह पाॅइन्ट स्प्रिंग लोडेड पाॅइन्ट कहलाता है जिसके कारण गाड़ी को वहाँ  होने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि लोको पायलट को अपनी गाड़ी तेज गति से चढ़ाई की ओर ले जानी होती है। प्रत्येक पहिए के उस पाॅइन्ट पर पहुँचने पर वह व्हील की फ्लेंज के दबाव से स्वतः ही मेन लाइन के लिए बदल जाता है व पहिए के निकल जाने के बाद पुनः कैच साइडिंग के लिए सेट हो जाता है। इस तरह प्रत्येक पहिया निकल जाता है व अन्त मे  गाड़ी के चढ़ाई की ओर बढ़ जाने के बाद एक बार फिर साइडिंग सेट हो जाती है। इस प्रकार यदि गाड़ी का विभाजन आगे हो जाए तो उसका पिछला भाग पीछे की ओर लुढ़ककर कैच साइडिंग मे  चला जाएगा।
  • यह साइडिंग लम्बाई मे  इतनी होती है कि विभाजित भाग पूरा का पूरा आसानी से समा सके।
  • इसे बनाने के लिए लाइन को चढ़ाई पर डाल दिया जाता है ताकि लुढकने वाले भाग की गति कम हो जाए और वह इस साइडिंग मे  रुक जाए।

स्लिप साइडिंग
  • यह साइडिंग उन स्टेशनों पर बनाई जाती है जहाँ स्टेशन ऊँचाई पर बना हो और ब्लाॅक सेक्शन की ओर अत्यधिक ढलान हो जिसके कारण स्टेशन पर रखे हुए किसी भी वाहन के ब्लाॅक सेक्शन की ओर रोल होकर जाने की संभावना रहती है।
  • यह साइडिंग कैच साइडिंग के मुकाबले छोटी होती है तथा इसे हमेशा स्टेशन सेक्शन में ही बनाया जाता है। यह ब्लाॅक सेक्शन का बचाव करती है। सामान्यतया पाॅइन्ट हमेशा स्लिप साइडिंग के लिए लगे हुए होते हैं ताकि कोई भी वाहन यदि ब्लाॅक सेक्शन की ओर जाने लगे तो वह सीधा इसमे  चला जाएगा और इस प्रकार ब्लाॅक सेक्शन का बचाव हो जाएगा।
  • इसके पाॅइन्ट स्टेशन के अन्य पाॅइन्टो  के साथ इन्टरलाॅक्ड होते हैं व गाड़ी/शंटिग संचालन के समय अन्य पाॅइन्टो  के साथ ही इनका भी संचालन किया जाता है।

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